उत्तर : भगवान श्रीकृष्ण पांडवों के दूत बनकर हस्तिनापुर गए थे, ताकि युद्ध टालकर पांडवों और कौरवों के बीच शांति स्थापित की जा सके, क्योंकि दुर्योधन उन्हें युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी भूमि देने को तैयार नहीं था.
प्रश्न - 2 भगवान दुर्योधन से क्या अपेक्षा रखते थे?
उत्तर : भगवान दुर्योधन से यह अपेक्षा रखते थे कि वह पांडवों के साथ शांति समझौता कर ले और उन्हें उनका उचित हिस्सा दे, ताकि भयंकर युद्ध और विनाश को टाला जा सके.
प्रश्न - 3 कृष्ण की चेतावनी सुनकर सारी सभा सन्न थी परंतु दो लोग प्रसन्न थे। वे कौन थे?
उत्तर : श्रीकृष्ण की चेतावनी सुनकर सारी सभा सन्न थी, परंतु दो लोग प्रसन्न थे - धृतराष्ट्र और विदुर, जो श्रीकृष्ण की बात से सहमत थे और उन्हें विजयी मान रहे थे.
लघूत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न - 1 दुर्योधन की धृष्टता पर भगवान ने क्या किया?
उत्तर : उत्तर : दुर्योधन की धृष्टता और श्रीकृष्ण को बंदी बनाने के प्रयास को देखकर भगवान ने क्रोधित होकर उसे युद्ध की कठोर चेतावनी दी.
प्रश्न - 2 युद्ध टालने के लिए पांडव किस सीमा तक समझौता करने के लिए तैयार थे?
उत्तर : युद्ध टालने के लिए पांडव समझौता करने के लिए तैयार थे, वे केवल पांच गांव या सुई की नोक के बराबर भूमि भी स्वीकार कर सकते थे, पर दुर्योधन ने इससे इनकार कर दिया.
दीर्घउत्तरीय प्रश्न -
प्रश्न - 1 'जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है', प्रस्तुत कविता के परिप्रेक्ष्य में यह कथन किस पर और क्यों लागू होता है?
उत्तर : यह कथन दुर्योधन पर लागू होता है, क्योंकि वह पांडवों के शांति प्रस्ताव को ठुकरा कर और अपने पिता व गुरुओं की बात न सुनकर अपने विवेक को खो बैठा. उसका विवेक मर गया था, जिसके कारण वह श्री कृष्ण को बंदी बनाना चाहता था और युद्ध के विनाशकारी परिणाम को नहीं समझ पा रहा था.
प्रश्न - 2 भगवान ने दुर्योधन को किन शब्दों में चेतावनी दी?
उत्तर : भगवान ने दुर्योधन को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वह अब भी नहीं मानता है, तो वह स्वयं ही उसे बंदी बनाने या मारने के लिए आ जाएंगे और तब वह कृष्ण को नहीं रोक पाएंगे, जिसका अर्थ था कि युद्ध अवश्यंभावी है.